डगमगाते पुल के सहारे टेढ़ी गाँव के 13 पुरवे के तीन हजार ग्रामीण
ग्रामीणों ने स्वयं बनाया लकड़ी की पुलिया
कांधपुर के पास प्यास नदी पर ग्रामीणों द्वारा बनाया गया लकड़ी का पुल
अड्डा बाजार से त्रिपुरारी यादव की रिपोर्ट
लक्ष्मीपुर ब्लाक के जंगल में स्थित टेढ़ी गांव के 13 पुरवे आज भी आवागमन के सुगम रास्ते के लिये तरस रहे हैं। गांव से बाहर निकलने के लिये ग्रामीणों द्वारा बनाया गया मात्र एक डगमगाता हुआ लकड़ी का पुल है। तीन हजार की आवादी विकास की किरण से अछूता रह गयी है। ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधियों से विकास की मांग किया है।जंगल के मध्य भौगोलिक दृष्टि से अतिपिछडा गाँव टेढ़ी के कुल पांच राजस्व ग्राम है। जिसमे कांधपुर, ब्रह्मपुर व बेलौहा, गंगापुर व टेढ़ी खास शामिल है। लेकिन इनमें मात्र राजस्व गांव टेढ़ी, गंगापुर ही हर मार्ग , विजली आदि से जुड़ा है। जबकि तीन राजस्व गांव कांधपुर, बेलौहा, ब्रह्मपुर के 13 पुरवे तक जाने आने का कोई सुगम मार्ग नहीं है। चारों तरफ से नदी और जंगल से घिरा हुआ है। 13 पूरवों की तीन हजार आवादी आवागमन की मुश्किलें झेल रहा हैं। राजस्व ग्राम ब्रह्मपुर , कांधपुर एवं बेलौहा के ग्रामीण शैलेश यादव, ओमप्रकाश, बेचन, जयहिन्द, बैजनाथ , रामसेवक , वेदप्रकाश , दुलारे, केवली, अवधराज , जोगेन्द्र , मुन्नाराम, संजय, जयचन्द सहित तमाम लोगों ने बताया कि उक्त तीन राजस्व गांवों में कुल 13 छोटे छोटे टोले गुलरिहवा , तीनटोलिया , कौअहवा , पथरिहवा , कुकरहवा , बसौहा , बीन्नरटोलिया, भुदलिहवा, डलिहवा, आनन्दनगर , बेरीकुड़ी , कांधपुर , बेलौहा सामिल है। जब भी ग्रामीणों को बाहर किसी काम से निकलना होता है तो प्यास नदी पर बने लकड़ी के डगमगाते पुल मात्र एक माध्यम है।
प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहे लोगों को गांव से बाहर निकलने के लिए मात्र एक लकड़ी की पुलिया है जिसे ग्रामीणों ने स्वयं बनाया है । स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि केवल चुनाव मे नेता जी इस गांव मे दिखायी देते हैं। चुनाव में ही जनप्रतिनिधियों को यहाँ के ग्रामीणों की याद आती हैं। हर बार प्रत्याशी प्यास नदी पर पुल बनवाने का वादा कर चले वोट ले लेते हैं। फिर अगले चुनाव में ही आते हैं। देश आजाद हुये कई दशक बीत गये लेकिन गांव में विकास की एक किरण भी नही दिखी। बरसात के समय तीन हजार आवादी की हालत काफी दयनीय हो जाती है। सबसे बड़ी दिक्कत आवागन की है। गांव में कोई साधन नही जाता है। किसी भी तरफ से जाने के लिये 5 किमी पैदल चलना पड़ता है। उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सबसे बड़ी दिक्कत सुगम मार्ग का नही होना है। सबसे अधिक परेशानी लड़कियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने में होती है। अपने रिस्तेदारों के घर रह कर पढाई करनी पड़ती है। अगर सुगम मार्ग होते हो दिक्कत नही होती। चारो तरफ से प्यास व रोहिन नदी घेरे हुए है । इसके अलावा गांव के हर तरह जंगल ही जंगल नजर आता है। दिन में ही बाहरी आदमी यहां जाने से डरते हैं। किसी भी तरफ से जाने पर जंगल व नदी तो पार करनी ही पड़ेगी। बाहरी व्यक्ति दिन भी यहाँ आने जाने से कतराते हैं। इस बावत शैलेश यादव समाजसेवी ने बताया कि भौगोलिक दृष्टि से उनका गांव दो भागों में विभाजित है। गांव के तीन राजस्व गांव कांधपुर, बेलौहा, ब्रह्मपुर के 13 पुरवे तक जाने आने का कोई सुगम मार्ग नहीं हैं। चारों तरफ से नदी और जंगल से घिरा हुआ है।
इस बाबत ग्राम विकास अधिकारी कृष्ण मोहन वर्मा ने बताया की टेढ़ी गांव की आवादी करीब 7 हजार है। जो भौगोलिक दृष्टि से नदियों व जंगल से घिरा है। यहां सरकार द्वारा संचालित सभी योजनायें चल रही हैं। लेकिन गांव के कुछ टोले पर आज भी सपंर्क मार्ग की समस्या बनी हुई है।
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