Indo-nepa border: अपने ही मेयर और गृहमंत्री की नही सुनते नेपाल के अधिकारीगण - प्रथम 24 न्यूज़

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Indo-nepa border: अपने ही मेयर और गृहमंत्री की नही सुनते नेपाल के अधिकारीगण



सोनौली महराजगंज।

एक तरफ नेपाल के नेता और जिम्मेदार भारतीयों को रिझाने की हर सम्भव कार्य और नित नए स्किम लांच किया जा रहा है, वही दूसरी तरफ नेपाल के जिम्मेदार अधिकारी एवं नेता अपने ही देश के नागरिकों का मर्दन कर रहे है।

बात कर रहे है भारत (India) नेपाल (Nepal) सीमा (Sonauli) नाका (border) सोनौली-बेलहिया (Sonauli-Belahiya) से गुजरने वाले आम नेपाली नागरिको को भारत से 100 रुपये से अधिक के सामान पर कर लगा कर उनका उत्पीड़न कर रही है वही नेपाली जनता अपने ही देश की प्रशासनिक व्यवस्था के चलते मानसिक बीमारियों से ग्रसित होते जा रहे है।

प्रथम मीडिया नेटवर्क (pratham 24 news) टीम ने भारत नेपाल आवागमन व रोजमर्रा की सामानों को लेकर जब दोनों देशों के स्थानीय कारोबारियो सहित आम नागरिकों का सर्वे किया तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए, कारोबारियों ने खुलासा किया कि, अकेले सोनौली और भगवानपुर बॉर्डर से रोजाना करोडो रुपये की लागत के सामाग्री तस्करो के माध्यम से नेपाल पहुच रहे है, आम नागरिकों का कहना है कि, नेपाली सुरक्षा एजेंसियां भारत के मुकाबले काफी कमजोर तंत्र है, जिसके कारण तस्करी रोकथाम में नेपाल फेल हो गया है।

भंसारकर्मी और प्रशासनिक तमगा नही सुनता अपने गृहमंत्री और मेयर की बात...आखिर क्यों...?
 
बीते माह सोनौली बॉर्डर पर लुम्बिनी प्रदेश के गृह मंत्री संतोष पाण्डेय ने कहा कि, मुख्य नाका से आने वाले आम नागरिकों को सामान लेकर आने पर कोई रोकटोक नही है, तस्करी में संलिप्त लोगो पर ही सख्ती अपनाया जा रहा है, वही सिद्धार्थ नगर मेयर इस्तियाक अहमद खान से भारतीय सीमाई क्षेत्र के सोनौली व नौतनवा के कई जनप्रतिनिधियों ने भेंटवार्ता कर भंसार पर सुबिधा काउंटर बढ़ाने एवं समुचित व्यवस्था के मुद्दे को लेकर बात हुई मगर दोनो ही नेपाली जनप्रतिनिधियों की बात आजतक नेपाल प्रशासन एवं भंसार नही माना है।

भैरहवा निवासी सुनीता मगर ने बताया कि, आम नेपाली नागरिक अगर सप्ताह भर की रोजमर्रा की सामान भारतीय बाज़ारो से 2 किलो चीनी, 500 ग्राम चायपत्ती, 200 ग्राम हल्दी, धनिया, जीरा, गरम मसाला एवं सब्जी मसाला बच्चो के लिए स्नैक्स, बिस्किट आदि एक एक पैकेट किया तो भी करीब 1500 से 2000 रुपये हो जाता है, सुनीता ने आगे कहा कि, जब हमे जीवन जीने के लिए कर बुझाना पड़ेगा तो हम खाएंगे क्या, और जिंदा कैसे रहेंगे।

भारत और नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों के स्थानीय लोगो का एक ही मत और सवाल है कि, वर्ष 1960 और वर्ष 2023 में बहुत बड़ा अंतर है। पूरे विश्व मे महंगाई चरम पर है, लोग जिंदा रहने की जद्दोजहद में लगे है, परिवार चलाना मुश्किल सा हो गया है, बेरोजगारी की मार पड़ रही है, ऐसे में उस दौरान के 100 रुपया का तुलना आज के समय 100 रुपए से करना कहा तक सही और उचित है।

सिद्धार्थनगर निवासी प्रमुख कारोबारी शुशील क्षेत्री ने कहा कि, नेपाली एपीएफ व प्रहरी बॉर्डर पर तस्करी को रोकने में पूरी तरह फेल हुई हैं, जिसके कारण नेपाल सुरक्षा एजेंसियां अपना ठीकरा आम नेपाली नागरिकों पर फोड़ रही है। क्षेत्री ने कहा कि, अगर नेपाल का राजस्व बढ़ाना है तो नेपाल-भारत सीमा से जुड़ी तमाम पगडंडियों पर आपसी सामंजस्य बना कर तस्करी पर पूर्ण विराम लगाने की जरूरत है ना कि, मुख्य नाका से आ रहे लोगो पर।

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