सरहद से सटे रूपनदेही जिले में एक दर्जन से अधिक फैक्ट्री बन्द: हजारो लोग हुवे बेरोजगार - प्रथम 24 न्यूज़

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सरहद से सटे रूपनदेही जिले में एक दर्जन से अधिक फैक्ट्री बन्द: हजारो लोग हुवे बेरोजगार


 🇮🇳सैकड़ो भारतीय मजदूर हुए बेरोजगार

🇮🇳 नेपाल बैंकों के व्याज और आर्थिक मंदी के कारण हुई समस्या


रूपनदेही नेपाल।

भारत नेपाल सीमा से सटे रूपनदेही जिले के करीब एक दर्जन से अधिक सीमेंट फैक्ट्री बन्द हो गयी है। जो चल रही है उसमे में आधे से कम का प्रोडक्शन हो रहा है। सीमावर्ती झेत्र के उधोगोगिक इकाइयों के बन्द होने से नेपाल सहित सैकड़ों भारतीय युवक एवं मजदूर बेरोजगार हो गए है।

रूपनदेही के भैरहवा-लुंबिनी सड़क खंड पर दर्जनों बड़े उद्योग हैं। यहां दो दर्जन से अधिक लघु उद्योग हैं। इस कॉरिडोर के आधे बड़े उद्योगों ने उत्पादन बंद कर दिया है, जबकि शेष उद्योग अपनी क्षमता का केवल 20-40 प्रतिशत ही उत्पादन कर रहे हैं।  सिद्धार्थ सीमेंट उद्योग के प्रबंध निदेशक रोहित कुमार अग्रवाल ने दूरदर्शिता के साथ कहा, "हम दुविधा में हैं कि रुकें या क्या करें", "बाजार शांत है, कोई बिक्री नहीं है।" हमारे जैसे कई उद्योगपति संकट में हैं क्योंकि बाजार में काम नही है।कहा कि जब विकास और निर्माण रुक गया है, ठेकेदारों को भुगतान नहीं मिला और उपभोक्ता की खर्च करने की क्षमता कम हो गई, सभी क्षेत्रों में निराशा फैल रही है। करीब 40 फीसदी क्षमता पर इंडस्ट्री चल रहा है। लुंबिनी कॉरिडोर में गोयनका, रिलांयस सीमेंट भी बंद हो गया है। इस कॉरिडोर में नेपाल अंबुजा सीमेंट, वृज सीमेंट इंडस्ट्रीज, जगदंबा सीमेंट, पाठक सीमेंट, सुप्रीम सीमेंट अपनी क्षमता का आधा भी उत्पादन नहीं कर रहे हैं। अर्गाखांची सीमेंट और अंबे स्टील्स अपनी क्षमता का केवल आधा उत्पादन कर रहे हैं।  "हर जगह मंदी है, राज्य ने व्यवसाय-अनुकूल नीति नहीं अपनाई है, कहीं से कोई समर्थन नहीं है, निजी क्षेत्र को कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है", अर्गाखांची सीमेंट के निदेशक और नेपाल उद्योग और वाणिज्य के केंद्रीय सदस्य राजेश कुमार अग्रवाल एसोसिएशन ने कहा, 'अगले 6 महीने तक देश की आर्थिक स्थिति ऐसी ही रहेगी, यहां तक ​​कि जो उद्योग-धंधे पिछले कुछ समय से चल रहे थे वे भी बंद हैं।'

नेपाल के व्यवसायियों का कहना है कि बैंक के ऊंचे ब्याज, कोरोना महामारी और सरकारी नीतियों के कारण उद्योग-धंधे चौपट होने की स्थिति में पहुंच गये हैं। "बैंक ब्याज माफ नहीं करते, कुछ समय नही देते। सरकार इसमें सुविधा नहीं देती, न ही उद्योगपतियों को राहत देती है, देश की आर्थिक स्थिति कहां जाएगी। ठाकुर कुमार श्रेष्ठ, अध्यक्ष सिद्धार्थ उद्योग व्यवसायी संघ ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा, 'निजी क्षेत्र डूब रहा है। देश डूब रहा है, इसलिए सरकार को पहले उद्योगपतियों को बचाना होगा।'

लुंबिनी कॉरिडोर में छोटे उद्योगों की भी यही स्थिति है। कुछ को बंद कर दिया गया है, जबकि जो अभी भी चल रहे हैं वे लाभ कमाने में सक्षम नहीं हैं और अपने कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।  उद्योगपतियों ने बताया कि अकेले लुंबिनी कॉरिडोर के लघु उद्योगों में एक अरब का निवेश हुआ है।

दस हजार से अधिक लोग हुए बेरोजगार

सीमावर्ती नेपाली फैक्ट्रियों के बन्द होने से करीब दस हजार लोग बेरोजगार हुए है। जिसमे आधे से अधिक भारतीय नागरिक है जो पिछले कई वर्षों से इन औधोगिक इकाइयों में काम कर रहे थे। सजीवन भारतीय निवासी सोनौली ने बताया कि 55000 सैलरी थी। मेरे जैसे सेल्स मेन, वर्कर, गोडाउन इंचार्ज ऑफिस स्टाफ मजदूर लगभग सभी भारतीय थे। गोरखपुर, बृजमनगंज, बिहार, दिल्ली, हरियाणा सहित भारत के ग्रामीण झेत्रो के लोग यहां काम करते थे।

वर्तमान में उद्योग तेजी से बंद होने के कारण उद्योग में काम करने वाले ऊपरी स्तर के आधे से ज्यादा कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। शाकिर, उत्तम, विनोद निवासी भैरहवा ने बताया कि सिर्फ कॉरिडोर क्षेत्र ही नहीं, बल्कि भैरहवा, बुटवल जैसे बड़े शहरी इलाकों की स्थिति और वहां संचालित होने वाले कारोबार की कहानी भी यही है।  शटर खाली किये जा रहे हैं.  व्यवसाय करने वाले लोग विदेश पलायन करने लगे हैं।

बुटवल इंडस्ट्री एंड कॉमर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरिप्रसाद आर्यल के कहा कि, बुटवल के मुख्य वाणिज्यिक और आंतरिक क्षेत्रों में पिछले 5 महीनों में कई शटर खाली हो गए हैं।  उन्होंने कहा, "जब कोई बिक्री नहीं होती और निवेश पर कोई रिटर्न नहीं होता तो व्यापार कौन करता है। भैरहवा का भी यही हाल है.  बुद्धाचौक, देवकोटाचौक, बैंकरोड, नारायणस्थान समेत अन्य जगहों पर व्यवसाय करने वाले लोग छोड़कर विदेश चले गए है।

नेपाल उद्योग एवं वाणिज्य महासंघ लुंबिनी प्रांत के अध्यक्ष कृष्ण प्रसाद शर्मा ने कहा कि निजी क्षेत्र पतन की स्थिति में है, जहां वह आगे नहीं बढ़ सकता है।  'सरकार निजी क्षेत्र के साथ काम नहीं करती' उन्होंने कहा, 'हमारी शिकायतें कोई नहीं सुनता, समस्या वहीं है जहां वे हैं.'  बैंकों का पैसा ख़त्म हो रहा है, सरकार रियायतें नहीं दे रही है, निर्माण कार्य ठप है, ठेकेदारों को भुगतान नहीं किया गया है।  बाज़ार में पैसा नहीं है। सभी इलाके वीरान हैं।'

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