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Breaking News: चीन साजिश के शिकार में श्रीलंका और पाकिस्तान के बाद नेपाल के दो एयरपोर्ट

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  • भैरहवा और पोखरा एयरपोर्ट की जिम्मेदारी चीन को देने पर सहमत हुवे नेपाल पीएम प्रचण्ड
  • भारतीय सीमा क्षेत्र से गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट कुछ किमी दूर
  • भैरहवा और पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट की ऑथारिटी चीन के पास
काठमांडू / नई दिल्ली डेक्स।

नेपाल अपने दोनों इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर अब गुमान करे या अफसोस, हालांकि दोनों ही परिस्थितियों में चीनी प्रभाव बन चुका है, दर्जनों शिष्टाचार भेंटवार्ता में चीन नेपाल के बीच समन्वय नही बन सका है, जिसके कारण नेपाल में करोडो रुपये निवेश कर के कारोबारी खुद को ठगा महसूस कर रहे है।

नेपाल के 32 संगठनों ने खोला मोर्चा: लगातार नेपाली सरकार के सम्पर्क में

भैरहवा एयरपोर्ट का कार्य शुरू होते ही नेपाली उद्योग पतियों ने भैरहवा, लुम्बिनी, पर्सा में करोडो रुपये का निवेश शुरू कर दिया, मगर 1 वर्ष बीतने के बाद भी हवाई जहाजों के संचालन नही होने से नेपाल सरकार के खिलाफ 32 संगठनों ने मोर्चा खोलते हुवे सड़को पर उतर गए।

चीन ने कहा उक्त दोनों एयरपोर्ट “BRI” का हिस्सा नेपाल ने कहा नही

नेपाल में हवाई अड्डे बनाना चीन की दिलचस्पी अपना प्रभाव क्षेत्र स्थापित करने और अमेरिकी आधिपत्य को चुनौती देने की उसकी बड़ी योजना का हिस्सा थी। भारत के साथ अपने संबंधों के कारण नेपाल को चीन के लिए एक मनमोहक व आकर्षक अवसर के रूप में देखा गया। हालाँकि, नेपाल ने चीन के इस दावे को चुपचाप खारिज कर दिया है कि हवाई अड्डा BRI का हिस्सा है। हवाई अड्डे में उपयोग की जाने वाली चीनी इंजीनियरिंग और निर्माण विधियों को उनकी उच्च लागत और खराब गुणवत्ता के लिए आलोचना का सामना करना पड़ चुका है।

ऋण नही चुकाने की दशा में नेपाल के दोनों एयरपोर्ट का चीनी सरकार के पास होगा नियंत्रण

नेपाल और पाकिस्तान दोनों अब चीन के बुनियादी ढांचे के विकास मॉडल पर बहुत अधिक निर्भर होने के परिणाम भुगत रहे हैं।अपने चीनी ऋणदाताओं को ऋण चुकाने के लिए के लिए नेपाल को पर्याप्त यात्री यातायात के बिना अपने ऋण भुगतान को पूरा करने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इन परियोजनाओं का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है, क्योंकि दोनों देश आर्थिक मुद्दों और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे हैं। नेपाल के दोनों एयरपोर्ट पोखरा और भैरहवा भी पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के समान हो सकता है, जिसे चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के तहत बनाया गया था, वर्तमान में भैरहवा और पोखरा के दोनों हवाई अड्डा निवेश और समृद्धि को आकर्षित करने में विफल रहा है, जिससे नेपाल गंभीर वित्तीय बोझ से जूझ रहा है। जबकि हवाईअड्डा आधिकारिक तौर पर बीआरआई का हिस्सा नहीं था, चीनी बैंकों ने अधिकांश धनराशि प्रदान की, और एक चीनी फर्म ने बुनियादी ढांचे का निर्माण किया। यहां तक ​​कि अंतरराष्ट्रीय यात्रियों का पहला जत्था भी चीन के समर्थन पर निर्भर था।


नेपाल स्थित भैरहवा और पोखरा एयरपोर्ट पर मंडराया चीन कब्जा का खतरा: चीन की गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण के लिए 76 मिलियन डॉलर एवं पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 215 मिलियन निवेश बना सिरदर्द: घाटे में भैरहवा पोखरा एयरपोर्ट बन सकता है चीनी सैनिकों का नया आशियाना


भैरहवा और पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर चीन ने खर्च की भारीभरकम रकम

पोखरा में नेपाल का 216 मिलियन डॉलर का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जनवरी में खोला गया। चीन एक दशक से भी अधिक समय पहले हवाई अड्डे के निर्माण के लिए ऋण प्रदान करने पर सहमत हुआ था। नेपाल ने सरकारी स्वामित्व वाले समूह, सिनोमैच की निर्माण शाखा, चीन सीएएमसी इंजीनियरिंग को ठेकेदार के रूप में चुना। वही नेपाल के भैरहवा में 76 मिलियन डॉलर के गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई हमले को एशियाई विकास बैंक और अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए ओपेक फंड द्वारा वित्तपोषित किया गया था, लेकिन इसका निर्माण चीन के नॉर्थवेस्ट सिविल एविएशन एयरपोर्ट समूह द्वारा किया गया था।


नेपाल सरकार के लिए वित्तीय बोझ बना चीनी निवेश: सदमे में निवेशक

चीनी फंडिंग से बना नेपाल का भैरहवा और पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के लिए वित्तीय बोझ बन गया है और इसे बीजिंग के कर्ज में छोड़ दिया है। श्रीलंका के ग्वादर बंदरगाह के समान, हवाईअड्डा निवेश और समृद्धि को आकर्षित करने में विफल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप नेपाल को भारी कर्ज का सामना करना पड़ा है। चीन के शुरुआती अनुमानों के बावजूद, वर्तमान में हवाई अड्डे से कोई अंतरराष्ट्रीय उड़ानें संचालित नहीं हो रही हैं।

नेपाल अब श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह बनने के कगार पर

भारत के लिए मुख्य चिंता यह है कि क्या नेपाल चीन को लोन चुकाने में सक्षम होगा, ऐसा न करने पर हंबनटोटा बंदरगाह की घटना दोहराई जा सकती है। हंबनटोटा पोर्ट श्रीलंका में है और चीन से वित्तीय सहायता के साथ बनाया गया था। साल 2018 में लोन चुकाने में विफल रहने के बाद श्रीलंका को बंदरगाह का लगभग 70 प्रतिशत नियंत्रण चीनी कंपनियों को पट्टे पर देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। वर्तमान समय में हंबनटोटा में युद्धपोतों और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) की पनडुब्बियों सहित चीनी जहाज नियमित रूप से ईंधन भरने या आपूर्ति लेने के लिए दिखाई देते हैं। भारत को जो बात परेशान करती है वह यह है कि बंदरगाह देश के तट के बेहद करीब है, वही नेपाल के भैरहवा का एयरपोर्ट कुछ ही किमी की दूरी पर स्थित है, जबकि पोखरा भी भारतीय सीमा के बेहद नजदीक है।

Source by: International National Media Articles

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