UP में निकाय चुनाव 2022 को लेकर बनी रणनीति, पिछली बार के नतीजे दोहराना बीजेपी के लिए बना चुनौती
प्रथम मीडिया नेटवर्क।
लखनऊ डेक्स।
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. बीजेपी सत्ता में रहते हुए निकाय चुनाव में एतिहासिक जीत दर्ज करने की कवायद में है, लेकिन बदले हुए सियासी समीकरण में उसके सामने 2017 जैसे नतीजे दोहराने की भी चुनौती है. इस बार सपा, बसपा, कांग्रेस सहित तमाम राजनीतिक दल मैदान में उतरने की तैयारी में हैं.
उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव की भले ही औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस तक अपनी-अपनी तैयारी में जुटे हैं. निकाय चुनाव के मुद्दे पर बीजेपी कोर ग्रुप नेताओं की बैठक बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास पांच कालीदास मार्ग पर हुई, जहां नगर निकाय चुनाव और एमएलसी की शिक्षक-स्नातक के क्षेत्र चुनाव को लेकर रणनीति बनी, लेकिन पिछली बार के नतीजा दोहराने की चुनौती है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह और प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल की मौजूदगी में बुधवार को बैठक हुई. वहीं, इससे पहले पिछले सप्ताह दिल्ली में बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के बीच बैठक हुई थी, जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह और महामंत्री संगठन बीएल संतोष और मुख्यमंत्री योगी शामिल थे. बीजेपी की यह दोनों ही बैठकों में निकाय चुनाव जीतने की रूप रेखा बनाई गई है.
नगर निकाय चुनाव के बाद 2024 में लोकसभा का चुनाव है. ऐसे में बीजेपी किसी तरह से सूबे में किसी तरह की कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. निकाय चुनाव को लोकसभा-2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. ऐसे में बीजेपी सभी नगर निगमों, जिला मुख्यालय वाली नगर पालिका परिषद के साथ प्रमुख नगर पंचायतों पर जीत का परचम फहराने की कवायद में है.
👉 2017 के नगर निगम के चुनावी नतीजे
बता दें कि 2017 के नगर निकाय चुनाव में देखें तो बीजेपी 16 नगर निगम में से 14 में अपना मेयर बनाई थी और दो मेयर बसपा के बने थे. नगर पालिका के नतीजे देखें तो 198 शहरों में से बीजेपी 67, सपा 45, बसपा 28 और निर्दलीय 58 जगह पर जीते थे. ऐसे ही नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव देखें तो 538 कस्बों में से बीजेपी 100, सपा 83, बसपा 74 और निर्दलीय 181 जगह जीत दर्ज की थी. 15 जनवरी तक इन सभी का कार्यकाल समाप्त हो रहा है.
वहीं, उत्तर प्रदेश में नगर निकाय की सीटें इस बार बढ़कर कुल 760 हो गई है. सूबे में 545 नगर पंचायत, 200 नगर पालिका परिषद और 17 नगर निगम की सीटें है. इस तरह नगर पालिका, पचायत अध्यक्ष, निगम में महापौर और पार्षद पद के लिए चुनाव कराए जाने हैं. निकाय चुनाव के सीटों के आरक्षण को लेकर मामला हाईकोर्ट में है, जिस पर शुक्रवार को फैसला आ सकता है. कोर्ट के फैसला पर भी सभी दलों की निगाहें लगी हुई है.
उत्तर प्रदेश में 17 नगर निगम है, जहां पर मेयर और पार्षद सीटों के लिए चुनाव होने है. बीजेपी ने पिछली बार 14 में अपना मेयर बनाने में कामयाब रही थी जबकि मेरठ और अलीगढ़ में बसपा के मेयर बने थे. सूबे की सभी 17 नगर निगम में बीजेपी अपना मेयर बनाने का प्लान बनाया है, जिसके लिए सभी 17 नगर निगम में सीएम योगी एक से दो रैलियां, रोड शो करने की रणनीति बनी है. इसके अलावा नगर निगम के चुनाव के लिए योगी सरकार के मंत्रियों और बीजेपी नेताओं को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है. बीजेपी सत्ता में नहीं रहते हुए भी निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती रही है और सरकार में रहते हुए उस पर बड़ा दबाव है.
👉 नगर पालिका और पंचायत का चुनाव
बीजेपी ने नगर निगम में बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन नगर पालिका और नगर पंचायत में पिछड़ गई थी. बीजेपी के सपा और निर्दलीय ने कड़ी टक्कर दी थी. नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव में बीजेपी से दो गुना ज्यादा निर्दलीय जीते थे. इस बार सपा और बसपा विधानसभा चुनाव के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी है, जिसके चलते बीजेपी की चुनौती बढ़ गई है. बीजेपी ने इस बार रणनीति बदली है और योगी सरकार के मंत्रियों और पार्टी नेताओं को अभी से जिम्मेदारी दे दी है. मंत्री, विधायक, सांसद और बूथ से लेकर प्रदेश पदाधिकारी दिनरात जुटने के लिए कहा गया है.
👉 शहरी इलाके में जातीय समीकरण
उत्तर प्रदेश के शहरी इलाके में पांच प्रमुख जातियां निर्णायक हैं. नगर निगम से लेकर नगर पंचायत तक मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका भी काफी है. सूबे के शहरी इलाके में देखें तो मुस्लिम, ब्राह्मण, कायस्थ, वैश्य और पंजाबी जातियां अहम भूमिका में है. बीजेपी ब्राह्मण-कायस्थ-वैश्य-पंजाबी समीकरण के जरिए शहरी इलाकों में जीत दर्ज करती रही है तो सपा और बसपा मुस्लिम वोटों के भरोसे अपना दम दिखाती है. दलित समुदाय शहरी इलाकों में बहुत ज्यादा संख्या में नहीं है जबकि ओबीसी में यादव, कुर्मी, जाट जैसी नौकरी पेशा वाली जातियां है. इन पांचों जातियों के समीकरण को देखते हुए राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है.
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