शिव पर अविश्वास के फलस्वरूप सती को करना पड़ा देह त्याग
तहसील प्रभारी फरेंदा से सुबाष यादव के साथ सुनिल कुमार की रिपोर्ट
नगर पंचायत आनंदनगर के वार्ड नंबर एक आंबेडकर (रतनपुर खुर्द) में नवनिर्मित शिव मंदिर के प्रांण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के अवसर पर श्रीराम कथा वाचक पंडित श्यामजी मिश्रा महाराज ने शिव सती प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान शंकर विश्वास के स्वरूप हैं और उनके ऊपर विश्वास न करने के स्वरूप सती को अपने पिता के यज्ञ में दया करना पड़ा।
भगवान भोलेनाथ सती को श्रीराम कथा सुनाने कुंभज ऋषि के पास ले गए और वापस लौटते समय उन्होंने दंडक वन में प्रभु श्रीराम लक्ष्मण को माता जानकी को खोजते हुए रोते हुए देखा। भगवान भोलेनाथ श्रीराम को पहचान गए और उन्होंने सच्चिदानंद को प्रणाम किया और सती को भी ऐसा करने के लिए कहा। लेकिन सती ने उनकी बात नहीं मानी और यह कह कर यह राजपूत्र हैं मैं प्रणाम नहीं करूंगी शिव के वचनों को नहीं माना और भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए चली गईं।
जब उन्होंने सीता का रूप बनाया तो शिवजी ने उनका पत्नी के रूप में परित्याग कर दिया। इस दुख से दुखी होकर कालांतर में अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां हो रहे यज्ञ में शिव का अपमान होते हुए देखकर उन्होंने अपने शरीर को योगासन में भस्म कर दिया। बाद में शिव ने वीरभद्र के माध्यम से पूरे यज्ञ को तहस-नहस करवा दिया। कथावाचक ने कहा कि भगवान भोलेनाथ की जो भक्ति करता है उन्हें वह सब कुछ प्रदान कर देते हैं।
इस अवसर पर, पंडित अर्जुन प्रसाद मिश्र, विंध्यवासिनी पांडेय, कृष्णानंद, शैलेष मिश्र, बालमुकुंद पांडेय, राजेश दुबे, रामकुमार, दुर्गा प्रसाद यादव, रामबचन, राकेश विश्वकर्मा, उमाकांत विश्वकर्मा, राजू जायसवाल, पवन कुमार गौड़, लक्ष्मीशंकर शर्मा, कमला जायसवाल, कमल यादव, रवि अग्रहरि, गजेंद्र पासवान, राम बरन यादव, श्याम सुंदर साहनी, जितेंद्र मौजूद रहे।
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