अमेरिकन MCC के वजह से नेपाल में भारी उथल-पुथल का माहौल, बंदी आगजनी शुरू, जाने क्या है एमसीसी.... - प्रथम 24 न्यूज़

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अमेरिकन MCC के वजह से नेपाल में भारी उथल-पुथल का माहौल, बंदी आगजनी शुरू, जाने क्या है एमसीसी....




प्रथम मीडिया नेटवर्क
काठमांडू: नेपाल

विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन की प्रक्रिया मे, संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) ने विश्व के 46 देशों के साथ मिलेनियम चैलेंज निगम (Millennium Challenge Corporation, MCC) समझौता पर अपना हस्ताक्षर किया है, नेपाल (Nepal) की अनुशंसा पर 14 सितमबर 2017 को संयुक्त राष्ट्र के साथ इस एमसीसी समझौता (MCC Agreement Nepal) पर सहमति जतायी, ताकि उन्हे ऊर्जा और सड़क के विकास के लिए जरूरी यूएस डॉलर 500 मिलियन की सहयोग राशि मिल सके।

हालांकि, इस समझौते में एक अड़चन ये भी है की सहयोग राशि प्राप्तकर्ता देश को इसे अपने देश के संसद द्वारा अनुमोदित करवाना होगा। वही नेपाल में इसका भारी विरोध चल रहा है, आज जैसे ही संसद में एमसीसी को लेकर बैठक शुरू हुआ तो, माओवादी व एकिकृत समाजवादियों के युवा कार्यकर्ताओं ने सड़को पर उतर टायर जलाए, वही आज नेपाल के सड़को पर बसों का संचालन भी बन्द रहा।

बीते चार साल से नेपाल में एमसीसी को पास कराने को लेकर बात चल रही है, बावजूद, इस देश में अब तक इस समझौते को संसद द्वारा पास करवा पाने में विफलता ही हाथ लगी है।


राजनैतिक पार्टियों के बीच गंभीर मतभेद

विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के बीच गंभीर मतभेद की वजह से, अब सारा देश ही इस मुद्दे के ऊपर बंट सा गया है, जहां की एक धड़ा इस समझौते का समर्थन कर रहा है तो दूसरा इसका विरोध। जो लोग इस एमसीसी अग्रीमन्ट का समर्थन कर रहे है वो इनके पक्ष में यह दलील दे रहे है की इससे प्राप्त भारी धनराशि से उनके देश में सड़क और हस्तांतरण लाइंस बनायी जा सकेगी, जो की देश के विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण है। ये तो अमेरिकी लोगों द्वारा नेपाली जनता को दिया जाने वाला एक उपहार सरीखा है।

ये भी तर्क दिया जाता है कि एमसीसी के अंतर्गत मिलने वाली अमेरिकी डॉलर 500 मिलियन के एक हिस्से का इस्तेमाल काठमांडू-हेतऔदा –बुतवाल 400 केव्ही ट्रैन्ज़्मिशन लाइन के निर्माण के लिए होगा, जो इस हीदरोपोएर प्रोजेक्ट से कुल 3000 मेगावाट की बिजली वितरण करेगी. ऐसी भी योजना है कि भविष्य में इस प्रोजेक्ट से पैदा होनेवाली अतिरिक्त बिजली को भारत में गोरखपुर में भी बेची जाएगी।

काफी उम्मीदें इस प्रोजेक्ट से है की इसके आने से लोगों की ये बढ़ेगी और साथ ही लोगों के लिए रोजगार के काफी अवसर उपलब्ध होंगे, गरीबी रेखा में भी काफी कमी आएगी और फिर, इससे देश का आर्थिक विकास के दर में भी तेजी आएगी।

आलोचकों का तर्क

दूसरी तरफ, आलोचकों का मानना है कि एमसीसी, नेपाल के राष्ट्रीय प्राथमिकता के खिलाफ है जहा वे भूमि के कानूनों का स्थान लेता प्रतीत होता है. उनका मानना है कि इस समझौते के अम्लीकरण के दौरान, देश की समस्त बौद्धिक संपदा के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का आधिपत्य हो जाएगा। ये भी शक किया जा रहा है कि इस समझौते से सीधा फायदा भारत को मिलेगा, क्यूंकी इस प्रोजेक्ट के तहत, बनने वाली ट्रांसमिशन लाइन को आगे जाकर भारत के साथ भी जोड़ा जाएगा।

आलोचकों का ये भी मत है कि ये एमसीसी समझौता अमेरिकी प्रशासन की एशिया-पेसिफिक नीति का एक यहां हिस्सा है, और ऐसी स्थिति मे,वो नेपाल को अमेरिकी रणनैतिक डिजाइन के अंतर्गत आने को विवश कर सकती है। साथ ही वे ऐसा समझते है कि बीआरआई का उद्देश्य ही है, चीन के बीआरआई युक्त मोडेल से मुक्ति।

एमसीसी के संदर्भ में  कुछेक सेक्शन में काफी चिंता होने की वजह से, वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा, ने एमसीसी हेड्कॉर्टर को 3 सितंबर को लिखे पत्र में समझौते से संबंधित 11 प्रश्नों के जरिए स्पष्टीकरण मांगा है। तुरंत ही उसके बाद, 8 सितंबर को अमेरिकी प्रशासन ने वित्त मंत्री शर्मा को 13 पन्नों की स्पष्टीकरण भेजी थी।

एमसीसी को लेकर चल रही दुविधा के तत्कार निपटारण की आवश्यकता को भांप कर एमसीसी की उपाध्यक्ष फातेमा ज़. सुमर, 9 सितंबर को नेपाल पहुंची। उनके चार दिवसीय दौरे के दौरान, नेपाली काँग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल- एकीकृत मार्कसिस्ट-लेनिनिस्ट (CPN-UML), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओईस्ट सेंटर (CPN-MC), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल एकीकृत सोशलिस्ट (CPN-Unified Socialist), जनता समाजवादी पार्टी  (JSP) और लोकतान्त्रिक समाजवादी पार्टी (LSP), के अलावा बाकी अन्य विभिन्न पार्टी के नेताओं के साथ उनकी बातचीत का दौर काफी व्यस्त रहा। विभिन्न राजनीतिक नेताओं और मीडिया के साथ के बातचीत में सुमर ने ये बात साफ करने की कोशिश की कि एमसीसी किसी भी प्रकार से इंडो-पेसिफिक नीति स्ट्रैटिजी का हिस्सा नहीं है।

उन्होंने कहा कि एमसीसी प्रोजेक्ट विशुद्ध रूप से विकास जनित उद्देश्य हित में है और इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से नेपाली नागरिकों के लिए हजारों रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे खास कर तब, जब की कोविड 19 के बाद की महामारी की वजह से कई लोगों की जीविका पर चिंता बनी।

MCC को लेकर चल रही दुविधा

एमसीसी के संदर्भ के, सुमेर के दिए गए स्पष्टीकरण के बावजूद आलोचक शांत नहीं हुए है। विरोधसवरूप, उन्होंने काठमांडू की सड़कों पर “नो एमसीसी” लिखित प्लेकार्ड्स लेकर विशाल प्रदर्शनी निकाली. इसलिए फिर, नेपाल के गृहमन्त्रालय ने लोगों को आगाह किया की वे ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल ना हो जो देश के विकास के लिए लाए जाने वाले प्रोजेक्ट्स को हानी पहुंचाए।

वर्तमान मे, 271 सदस्यीय संसद मे, सत्तारूढ़ दल, नेपाली काँग्रेस के मात्र 61 सांसद, एलएसपी के 13 सदस्यों पर ही एमसीसी को दिए जाने वाले समर्थन के लिए विश्वास किया जा सकता है. इस जरूरत के संदर्भ मे, अन्य पार्टियों – चाहे वो सरकार की तरफ से हो अथवा विरोधी की तरफ से – किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है. एमसीसी के खिलाफ बढ़ते जनाक्रोश के मध्य मे, ऐसे कई लोग जो पहले एमसीसी के समर्थन में थे, अब वे भी शांत हो गए है. स्थिति इतनी विकट हो गई है कि एमसीसी के समर्थन में दिया जाने वाला चाहे कोई भी तर्क क्यू ना हो, उसे तत्काल ही देशद्रोह के अधिनियम के रूप में ब्रांडेड कर दिया जा रहा है।

एमसीसी के मुद्दे पर नेपाल पहले से ही विभाजित है, वक्त की पुकार यही है कि एमसीसी के संबंध में एक राष्ट्रीय सहमति बनायी जाए और किसी भी प्रकार के अफवाहों से घिरे नहीं, उन्हे चुनना होगा कि क्या वे श्रीलंका की तरह बनना चाहेंगे जिन्होंने इस एमसीसी समझौते को कुछ वजहों से रद्द कर दिया या फिर मंगोलिया की तरह , जो की नेपाल की ही तरह से बंदरगाह विहीन देश होने के बावजूद , इसे सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर पा रहा है। अगर उन्होंने एमसीसी को रद्द किया तो, उसे ना सिर्फ अमेरिका द्वारा बल्कि बाकी अन्य बहुपक्षीय संस्थानों से मिलने वाले सहयोग राशि आदि का नुकसान होगा। 

परंतु आगे वो इसकी पुष्टि करता है, तो उसके अन्य फायदे भी होंगे। अब तो ये बॉल विशुद्ध नेपाल के पाले में है, कि क्या वे एमसीसी के साथ अथवा उसके बगैर ज़िंदगी जीना चाहते है।

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