UP ELECTION 2021: पंचायत चुनाव आरक्षण फॉर्मूले को लेकर यूपी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा में जद्दोजहद
प्रथम 24 न्यूज़ डेक्स
लखनऊ-उत्तर प्रदेश।
उत्तर प्रदेश में होने जा रहे त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के घोषित आरक्षण के फॉर्मूले को लेकर प्रदेश सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा में जद्दोजहद चरम पर पहुंच रही है। सूत्रों के अनुसार पार्टी में आरक्षण फार्मूले को लेकर असंतोष अब सतह पर आ गया है। पार्टी के कई सांसदों, विधायकों और जिलाध्यक्षों ने शीर्ष नेतृत्व से यह शिकायत भी की है कि उनके लोग पंचायत चुनाव लड़ने की तैयारी किए बैठे थे मगर आरक्षण के फार्मूले की वजह से उनके लोग चुनाव लड़ने से वंचित हो गए।
सूत्र बताते हैं कि पंचायतीराज विभाग में इस मुद्दे पर पिछले कई दिनों से गंभीर मंथन चल रहा है। सोमवार की शाम को इस बारे में शासन स्तर पर काफी देर तक विचार विमर्श होता रहा। चूंकि हाईकोर्ट ने समयबद्ध ढंग से 15 मई तक पूरी चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न करवाने के आदेश दे रखे हैं और पंचायतों के पदों की सीटों के आरक्षण की अनंतिम सूची भी जारी हो चुकी है जिस पर दावे और आपत्तियां मांगे जाने का समय भी सोमवार 8 मार्च को बीच गया इसलिए अब आरक्षण के फार्मूले में बदलाव की गुंजाईश तो रही नहीं।
अब सत्तारूढ़ भाजपा के असंतुष्ट सांसदों, विधायकों और जिला अध्यक्षों को समझाने के लिए तर्क गढ़े जा रहे हैं मसलन इस बार के आरक्षण से एससी और ओबीसी के वंचित लोगों को काफी लाभ हुआ, तकनीकी तौर पर ऐसा साफ्टवेयर बनायाग या जिससे आरक्षण तय करने में कहीं कोई अनियमितता नहीं हुई।
‘हिन्दुस्तान’ ने इस बारे में भाजपा के अवध क्षेत्र के पंचायत प्रकोष्ठ के प्रभारी शंकर लाल लोधी से बात की तो उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव के आरक्षण को लेकर असंतोष सिर्फ उन्हीं लोगों को है जो गांव की सरकार पर पीढ़ी दर पीढ़ी एन केन प्रकारेण काबिज थे। अब इस नए आरक्षण फॉर्मूले से ऐसी तमाम पंचायतों को आरक्षण का लाभ मिला जो 1995 से 2015 तक हुए पंचायत चुनाव में कभी आरक्षित हो ही नहीं पायीं। अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के हमारे लोगों को इस बार चुनाव लड़ने के काफी अवसर मिले हैं इसलिए आरक्षण का यह फार्मला पूरी तरह उचित है और इसमें कतई कोई खोट नहीं है।
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