उत्त्पन्ना एकादशी व्रत 11 दिसम्बर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है.... जाने कैसे करना है यह व्रत
"यह तन बिष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करूणामय बार बार बंदौ तेहि पाई।।"
उत्त्पन्ना एकादशी पारण (विधि तोड़ने का) समय 1:17 दोपहर से 3:21 तक, पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय 3:18 शाम है।
कथा इस प्रकार है
एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते है, एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारणद्वितीय तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है, यदि द्वितीय तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है द्वितीय तिथि के भीतर पारण ना करना पाप करने के समान होता है, एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नही करना चाहिए जो श्रद्धालु व्रत कर रहे है उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वितीय तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है, व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातः काल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिये कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातः काल पारण करने में सक्षम नही है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिन के लिए हो जाता है, जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त परिवार जनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते है, सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिये जब जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती है।
भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम् भक्तों को दिनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है,
Post a Comment