माह-ए-रमजान का तीसरा अशरा शुरू,ताक रातों की बढ़ी अहमियत
🔔 शोसल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए चल रही हैं इबादतें
तहसील ब्यूरो फरेंदा से नसीम खान की रिपोर्ट
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मुक़द्दस रमजान का एक एक दिन जैसे-जैसे बीत रहा है रोजेदारों में अगली तैयारी को लेकर उत्साह बढ़ता जा रहा है। हलांकि कोविंड-19 कोरोना वायरस के कारण लॉक डाउन होने से उत्साह में अवश्य कमी दिख रही है, इसके साथ मस्जिदों में शासन-प्रशासन द्वारा दिये गए दिशानिर्देश के पालन करते हुए 3 से 4 लोगों के साथ नमाज़े अदा की जा रही है,बाकी लोग रोजे,इफ्तार,इबादत,तिलावत,आदि अपने-अपने घरों में रहकर कर रहे है।ऐसे में बृहस्पतिवार को 20 रोजे पूरा हो गए। मौलाना हाजी बैतुल्लाह खान साहब ने बताया कि जुमेरात (बृहस्पतिवार) की शाम नमाज मगरिब के बाद तीसरा अशरा प्रारम्भ हो गया है। रमजान के आखरी अशरा जहन्नम यानी (नरक) की आग से छुटकारा दिलाने वाला होता है। इस अशरे की पांच ताक रातों का विशेष महत्त्व होता है। जिसमें में 21, 23, 25, 27,और 29, रमज़ान की रातें होती है इन्ही रातो में कुरआन पाक नाजिल हुआ था और उन्ही रातों को शब-ए-कद्र की रात कहा जाता है। रोजेदार इसी रातों में शब-ए-कद्र की रात की तलाश करते है। शब-ए- कद्र की रात में इबादत करना हजार महीनो की रातो से ज्यादा अफजल है। रमजान के आखरी रातो मे सब के गुनाहों (पापों)को माफ दिए जाते है।
20 वें रोजे की शाम मगरिब के बाद से ही एतकाफ का अमल शुरू होता है। इस अमल का बहुत ऊंचा दर्जा है। एक आदमी एतकाफ में बैठ जाए तो पूरी गांव का हक अदा हो जाता है। अल्लाह उस बस्ती पर आने वाले अजाबों को हटा लेता हैं। तीसरे अशरे में ही हम जकात सदक़ा व फ़ितरा निकालते है इसे खास कर गरीब मजलूम लोगो में बाटना चाहिए ताकि उन गरीब लोगो की ईद की ख़ुशी मिल सके। इस महीने में बुराइयो से बचे सिर्फ भूखे से नही बल्कि हर नफ़्स का रोजा रखे। माहे रमजान को नेकियो का मौसमें बहार कहा गया है, यह सब्र का महीना है और सब्र का बदले में जन्नत है ।
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