हजरत सूफी निजामुद्दीन ने पूरी जिन्दगी अमन व शांति का दिया संदेश, शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ों स्कूल का कर चुके है स्थापना - प्रथम 24 न्यूज़

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हजरत सूफी निजामुद्दीन ने पूरी जिन्दगी अमन व शांति का दिया संदेश, शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ों स्कूल का कर चुके है स्थापना



बरकत अली/विशेष संवाददाता

भारत के प्रसिद्ध सूफी बुजुर्ग इस्लामिक विद्वान हजरत सुफी निजामुद्दीन मुहद्दिस बस्तवी का जन्म सेमरियावाँ ब्लॉक के अगया में हुआ था। अरबी शिक्षा जगत को हजरत सूफी साहब ने एक नया आयाम दिया। सूफी साहब ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ों मदरसों का शिलान्यास किया, जिसमे दो बहुत पुराने और पूरे देश में मशहूर है। मदरसा अलजामिया तुल निजामिया शुकरौली सोनौली और जामिया बरकातीया हजरत सुफी निजामुद्दीन लोहरौली संतकबीरनगर कबीर नगर।

अमनों शांति के प्रतीक सूफी साहब की किताबों को पढ़ कर लोग अमन व शांति का संदेश दे रहे हैं। पूरी जिन्दगी अपने अमल व किरदार से सीधा रास्ता दिखाने का कार्य किया।

हजरत सूफी निजामुददीन साहब के पौत्र मौलाना जियाउल मुस्तफा निजामी ने बताया हमारे दादा खतीबुल बराहीन अलहाज अश्शाह हजरत सुफी निजामुद्दीन मुहद्दिस बस्तवी पूरी जिन्दगी शिक्षाा को बढावा देने के लिए सैकड़ों मदरसे की स्थापना किया। अपनी कलम व जुबान से समाज को एक अच्छा रास्ता दिखाते रहे। उन्होंने बताया कि हमारे दादा खतीबुल बराहीन हजरत सुफी निजामुद्दीन मुहद्दिस बस्तवी का जन्म सेमरियावाँ के अगया में 15 जनवरी 1928 को हुआ था। घर पर प्रारम्भिक शिक्षा लेने के बाद 1947 में आगे की शिक्षा बसडीला में लिया। उच्च शिक्षा के लिए 1948 में अल्जामीयतुल अशरफिया मुबारकपुर से लिया। मुबारकपुर में शिक्षा लेने के बाद 1952 में हजरत की दस्तार बंदी हुइ। जन्म से ही सीधे व सरल स्वभाव के होने के कारण इनका नाम सूफी पड़ गया। हजरत सूफी निजामुद्दीन शिक्षा को बढ़ावा देते हुए 14 मार्च 2013 को पैत्रिक गांव अगया में मृत्यू हुई थी। 

अंतिम संस्कार में देश व विदेश से लाखों की संख्या में उनके चाहने वाले पहुंचे, उनका सालाना उर्स अरबी महीने की एक जुमादल अव्वल को बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैजहां हर साल लाखों की संख्या में अकीदत मंद पहुंचकर खराजे अकीदत पेश करते हें।

इन की मशहूर किताब सूफी साहब अपने जिन्दगी में शिक्षा की खिदमत को अंजाम देते हुए समाज को सीघा रास्ता दिखाने के लिए एक दर्जन से अधिक किताबेंं लिखी। इनमें प्रमुख रुप से बरकाते रोजा, हुक़ूके वालिदैन, फजाइले मदीना, फलसफए कुर्बानी, बरकाते मिस्वाक, दाढ़ी की अहमियत, फजाइले तिलावते कुरान मजीद, इख्तियारते इमामुन नबियीन, खाने पीने का इस्लामी तरीका जो काबिले जिक्र है इन के जिन्दगी पर लिखी पुस्तकें कई लेखकों ने इन के जिन्दगी पर किताबें लिखी है। जो आज भी लोगों के उनके बाताए संदेशों पर चलने की सीख देती है। इन के जिन्दगी की प्रमुख किताबों में दो अजीम शख्सियत, खतीबुलबराहीन एक मुनफरद मिसाल शख्सियत, आईने मोहद्दिस बस्तवी, खतीबुल बराहीन अपने खुतबात के आईने में, खतीबुल बराहीन आईने अश्आर में, मोहद्दिस बस्तवी सुन्नते रसूल के आईने में, तोहफ-ए-निजामी आदि प्रमुख पुस्तक है। 

20 वर्ष तक दिया था नि:शुल्क शिक्षा हजरत सूफी निजामुद्दीन साहब चार मदरसों में शिक्षण कार्य किया। सबसे पहले दारुल उलूम फैजुल इस्लाम मेहंदावल, दारुल उलूम शाह आलम अहमदाबाद गुजरात,दारुल उलूम फजले रहमानिया पचपेड़वा में शिक्षण कार्य किया। अन्तिम में दारुल उलूम तनवीरुल इस्लाम अमरडोभा में शैखुल हदीस के प्रवक्ता पद पर रहे। उन्होंने 20 वर्ष तक बिना वेतन के ही शिक्षण कार्य किया, हजरत सूफी मुहम्मद निजामुद्दीन बरकाती का 10 वां उर्स-ए पाक 25 नवम्बर को अगया स्थित खानकाहे निजामिया पर आयोजित होगा। आयोजन कमेटी के लोगों ने उर्स के कार्यक्रम की तैयारियां शुरु कर दिया है।

बता दें की हजरत सूफी निजामुद्दीन एक बड़े आलिम-ए-दीन और सूफी बुजुर्ग के रूप में प्रसिद्ध थे। देश के विभिन्न प्रांतों, पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं खाड़ी देशों में उनके अनुयाई बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

हर वर्ष उनका वार्षिक उर्स भव्य रूप में मनाया जाता है, जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंचते हैं। पचीस नवम्बर सुबह में फर्ज की नमाज के बाद सूफी साहब की मजार पर कुरान खानी के साथ ही उर्स का कार्यक्रम शुरू होगा। दोपहर बाद  जुमा की नमाज के बाद मजार पर चादर पोशी और गुल पोशी का सिलसिला शुरू होगा और देर शाम तक चलेगा। रात में ईशा की नमाज के बाद निजामी कॉन्‌फ़रन्‍स्‌ का आयोजन होगा। जिसमें देश के कई बड़े इस्लामिक विद्वान प्रतिभाग करेंगे। 26 नवम्बर 2022 की सुबह में मजार पर कुल शरीफ के आयोजन के बाद उर्स का कार्यक्रम समाप्त हो जाएगा।

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