ऐतिहासिक धरोहर ट्राम्ब वे रेल परियोजना का वजूद खतरे में - प्रथम 24 न्यूज़

Header Ads

ऐतिहासिक धरोहर ट्राम्ब वे रेल परियोजना का वजूद खतरे में

 


खुले आसमान के नीचे जंग खा कर सड़ रहे हैं ऐतिहासिक लौह सम्पदा धरोहर

लक्ष्मीपुर, पुरन्दरपुर से वसीम खान के साथ गणेश यादव की संयुक्त रिपोर्ट/ 

सोहगीबरवा वन्यजीव प्रभाग,  लक्ष्मीपुर के एकमा डिपो में  बन्द पड़ी ब्रिटिश हुकूमत कालीन ऐतिहासिक धरोहर का अस्तित्व खतरे में है। संरक्षित करने के नाम पर चार वर्ष पहले  25 लाख रुपए खर्च कर दिये गये लेकिन अब भी खुले आसमान के नीचे तमाम लौह सम्पदा बिखरी पड़ी हुई है, जिनमें ट्राम्बे रेल बोगियां, ट्राली एवं अन्य उपकरण शामिल हैं। पर्यटन, रेल व वन विभाग के तमाम जिम्मेदार कई बार  निरीक्षण में आये लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। 



महराजगंज के सोहगीबरवा जंगल की बहुमूल्य वनसंपदा को दुर्गम वनक्षेत्र से मुख्यरेल लाइन तक लाने के लिये ब्रिटिश हुकुमत के दौरान वर्ष 1924 में लक्ष्मीपुर रेलवे स्टेशन के निकट ट्राम्बे वे रेल परियोजना स्थापित की गयी थी। जिसके  निर्माण में 351243 रुपये खर्च किये गये थे। जिसमें लक्ष्मीपुर रेंज और उत्तरी चौक रेंज के जंगल में 22.4 किमी दूरी तक रेल लाइन बिछायी गयी थी। निरन्तर 55 वर्षो की सेवा कर के 8 लाख घाटे के बाद 1982 में ट्राम्बे वे रेल परियोजना को बन्द करना पड़ा। इसमें शामिल प्रत्येक 40 अश्व शक्ति के 4 इंजन, 26 बोगियां व सैलून, 2 निरीक्षण ट्राली सहित तमाम उपकरणों को एकमा डिपो में सुरक्षित रख दिये गये थे। विगत 15 अक्टूबर 2008 को तत्कालीन वनमंत्री फतेहबहादुर सिंह ने इसे ऐतिहासिक धरोहर में सामिल करते हुये संरक्षित करने का निर्देश दिया था। लेकिन सरकार जाते ही प्रस्ताव फाइलों में दब गया।



शासन के निर्देश पर बार्डर एरिया डब्लपमेंट वर्ष 2015-16 के तहत विरासत स्थल के रूप में ट्राम्बे वे रेल परियोजना लक्ष्मीपुर को चयनित किया गया । कुल 6 हेक्टेयर भूमि एकमा डिपो में रखे गए, ब्रिटिश कालीन ट्राम्बे लौह सम्पदा को एकत्र कर धरोहर के रूप में रखने का आदेश था। जिसके लिये 25 लाख रुपए शासन ने निर्गत किया। इसके सुरक्षा एवं ग्रामीण पर्यटन विकास हेतु लक्ष्मीपुर के एकमा में स्थित ट्राम्बे वे रेल परियोजना के प्रारम्भिक बिंदु एकमा डिपो परिसर में रखे इंजन, टण्डल, सैलून बोगी, स्पेशल बोगी, गार्डयान एवं अन्य उपकरणों में से कुछ को एकत्र कर टीनशेड गोदाम में रख दिया गया। लेकिन अब भी अधिकांश बोगियां , ट्राली व अन्य उपकरण लौह सम्पदा बाहर ही खुले में पड़ी हुई हैं। केवल इंजन, बोगी, सैलून आदि की मरम्मत और रंगाई पुताई, साफ़ सफाई के नाम पर 25 लाख की धनराशि खर्च कर दी गई। 1982 से बन्द पड़ी ऐतिहासिक परियोजना के इंजन व पटरी को मरम्मत कर लक्ष्मीपुर जंगल में 15 किमी दूर टेढ़ीघाट विश्रामालय तक चलाने की मांग स्थानीय स्तर पर कई बार की जा चुकी है। जिसके लिए पर्यटन, रेल, वन विभाग के अधिकारियों का कई बार निरीक्षण हो चुका है। इस बाबत रेंजर विजय शंकर द्विवेदी ने बताया कि ट्राम्बे रेल परियोजना के ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने का कार्य हमारे कार्य काल का नही है। हम भौतिक निरीक्षण करने के बाद कुछ कह सकते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं

इस पोस्ट से सम्बंधित अपने विचारों से हमे अवगत जरूर कराए

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.