सावधान: अगर आप लिखना पढ़ना नही जानते तो सोनौली के बैंक में ना जाएं
प्रथम 24 न्यूज़ डेक्स।
सोनौली महराजगंज।
अपना ही पैसा वापस लेने के लिए बैंक परिषर का चक्कर लगाना, घंटो लाइन लगना, तेज धूप में बाहर खड़े रहना, फिर भी अगर आप किसी तरह बैंक पहुच ही गए तो पता चला, नेट काम नही कर रहा, आज सर्वर खराब है, इतना ही नही अगर आप बैंक के अंदर पहुच गए तो पता चला कि आप को अपना फार्म भरने के लिए बाहर सड़क पर जा कर किसी को खोजना होगा या सड़क पर किसी व्यक्ति से या अपने साथ गए व्यक्ति से सड़क पर ही फार्म भरवाना होगा, इतना ही नही सोनौली के बैंकों में वैश्विक महामारी कोरोना काल मे पासबुक प्रिंट भी नही हो पा रहा है, जिससे खाताधारकों को पता ही नही चल पाता कि उनके खाते में कितना बचत बचा हुआ है, जबकि गलती से भी अगर बैंक कर्मी खाता चेक करने का सवाल पूछ ही लिया तो आपकी खैर नही साहब सीधे बाहर का रास्ता दिखाते है।
जानकारी देते चले कि, सरहदी कस्बा सोनौली कहने को तो विकासशील नगर पंचायत है मगर नगर में गिनती के सिर्फ तीन बैंक 1-स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, 2-पूर्वांचल बैंक, 3-यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, इन बैंकों का अपना ही रोना है, नेट ना होना, सर्वर खराब होना यहां आम बात है, माह में कम से कम 20 दिन यही समस्या रहती है, इसके बाद बैंकों में पासबुक प्रिंट को जैसे समाप्त ही कर दिए है।
आज हम बात कर रहे है यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के बारे में इस बैंक के कर्मचारियों की लॉक डाउन में भारी लापरवाही देखने को मिली, भीषण धूप में लोगो को बाहर ही खड़ा किया गया जबकि बैंक गार्ड व कर्मचारी के परिचय के लोगो को अंदर बैठाया जा रहा था, बूढ़े महिलाएं बच्चे कड़कती धूप में बाहर अपना बचाव करते नजर आए।
कहने को तो बैंक सबका साथी मगर सच्चाई यह है कि बैंक गार्ड हो या कर्मचारी सबका अपना अलग ही एक फंडा है। आज दिनांक 14 अगस्त 2020 समय 10:15 बजे एक किसान अपनी पत्नी को लेकर युनाइटेड बैंक पैसा से पैसा निकालने आया था, महिला बैंक के अंदर गई, मगर पैसा निकालने के लिए फार्म भरना था, चूंकि महिला अनपढ़ थी, पति बाहर, महिला लाइन छोड़ती तो फिर घंटो बाद नम्बर आता, मगर पैसा भी लेना है, अब तो मजबूरी है बाहर जाना।
यही नही अगर बैंक गार्ड के (रिस्तेदार) महोदय का आगमन हुआ तो बिना कुछ पूछे रास्ता दे देंगे, मगर एक आम खाताधारक को कड़कती धूप में बाहर ही खड़ा होना है। क्या यही बैंकिंग लोकपाल अधिनियम का पालन है। क्या यही बैंकिंग व्यवस्था एक आम भारतीय पर लागू किया गया है। क्या बैंक हमे अपना पैसा दे रहा है, नही ना, हम अपना ही पैसा लेने के लिए जाते है। फिर भी एक आम भारतीय का इन बैंक कर्मचारियों द्वारा मानसिक/शारीरिक उत्पीड़ित किया जाता रहा है।
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